मनुष्य और सर्प – रामधारी सिंह “दिनकर”
मनुष्य और सर्प ( Manushya aur sarp ) राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित खंडकाव्य रश्मिरथी का एक छोटा सा अंश है | इस कविता में दानवीर कर्ण और विषधर भुजंग अश्वसेन का संवाद प्रस्तुत किया गया है |

“ चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग,

फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग।

वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग,

बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग। “
https://thehindigiri.com/manushya-aur-sarp-poem/
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मनुष्य और सर्प – रामधारी सिंह “दिनकर” मनुष्य और सर्प ( Manushya aur sarp ) राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित खंडकाव्य रश्मिरथी का एक छोटा सा अंश है | इस कविता में दानवीर कर्ण और विषधर भुजंग अश्वसेन का संवाद प्रस्तुत किया गया है | “ चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग, फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग। वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग, बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग। “ https://thehindigiri.com/manushya-aur-sarp-poem/ https://thehindigiri.com/
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